इस्कॉन (ISKCON) क्या है? इसका इतिहास, उद्देश्य और जीवन पर प्रभाव !

आपको भी किसी ने इस्कॉन मंदिर से जुड़ने और हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने के लिए बोला है लेकिन समझ नहीं आ रहा कि इस्कॉन क्या है ? इससे जुड़ना कैसे है ? इसके नियम क्या है ? तब आज जानते है कि इस्कॉन मंदिर क्या है? और क्या है इससे जुड़ा इतिहास…

इस्कॉन मंदिर का मतलब है, अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ यानी इंटरनेशनल सोसाइटी फ़ॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) जिसकी स्थापना जगद्गुरु श्रील प्रभुपाद जी ने 13 जुलाई 1966 को न्यूयॉर्क अमेरिका में की थी । इस्कॉन की स्थापना के पीछे एक मुख्य कारण अपने गुरु के आदेशानुसार विश्वभर में कृष्णभावनामृत का प्रचार करने की प्रबल इच्छा है… आइये अब इसके बारें में और अधिक जानते है ।

इस्कॉन की स्थापना क्यों हुई ?

दुनिया में हजारों धार्मिक संस्थाएं है..फिर इस्कॉन जैसी एक नई संस्था को बनाने की क्या आवश्यकता थी ?

श्रील प्रभुपाद जी बताते है कि अन्य धार्मिक संस्थाएं अपने सिद्धांतों और दर्शनों को लेकर भटक गई थीं और वे भगवान कृष्ण की भक्ति को अपने मूल रूप में नहीं फैला रही थीं।
तब भगवान कृष्ण की भक्ति को पूरे विश्व में फैलाने के लिए एक नई संस्था की आवश्यकता थी जो मूल भक्ति सिद्धांतों को अपनाती हो इसलिए इस्कॉन की स्थापना की गई इसका उद्देश्य दुनिया भर से लोगों को कृष्ण की सेवा में लाना और लोगों के बीच शांति और खुशी फैलाकर उन्हें कृष्ण के प्रति जागरूक बनाना था।

इस्कॉन के संस्थापक आचार्य अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद जी

इस्कॉन गौड़ीय – वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है,गौड़ीय वैष्णव आमतौर पर चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों के रूप में जाने जाते हैं,दार्शनिक रूप से, यह संस्कृत ग्रंथों भगवद-गीता और श्रीमद्भागवतम पर आधारित है। ये भक्ति योग परंपरा के पवित्र ऐतिहासिक ग्रंथ हैं, जो सिखाते हैं कि सभी जीवित प्राणियों के लिए अंतिम लक्ष्य “सर्व-आकर्षक” भगवान कृष्ण के प्रति उनके प्रेम को फिर से जागृत करना है।

1966 में इस्कॉन की स्थापना करते समय, श्रील प्रभुपाद जी ने इस्कॉन के 7 उद्देश्य बताए:

(१) जीवन में मूल्यों के असंतुलन को नियंत्रित करने के लिए तथा विश्व में वास्तविक एकता एवं शांति स्थापित करने के लिए सम्पूर्ण जन-समाज में आध्यात्मिक ज्ञान का सुव्यवस्थित प्रचार करना तथा सब लोगों को आध्यात्मिक जीवन की साधन-विधियों में सुशिक्षित करना।

(२) श्रीमद्भगवद्‌गीता तथा श्रीमद्भागवतम् में प्रतिपादित कृष्णभावना का प्रचार करना

(३) संघ के सदस्यों को परस्पर सम्मिलित करके आदिपुरुष कृष्ण के अधिक निकट ले आना और इस प्रकार संघ के सदस्यों में तथा सम्पूर्ण मानव-समाज में इस भावना का विकास करना कि प्रत्येक जीवात्मा भगवान् (कृष्ण) के गुण का भिन्नांश है।

(४) भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु के उपदेशों में प्रचारित पवित्र भगवन्नाम के सामूहिक कीर्तन की शिक्षा देना तथा इस संकीर्तन-आन्दोलन को प्रोत्साहित करना।

(५) सम्पूर्ण जनसमाज तथा सदस्यों के लिए भगवान् श्रीकृष्ण को समर्पित एक पावन दिव्य लीला धाम का निर्माण करना।

(६) सदस्यों को अधिक सरल एवं स्वाभाविक जीवन की पद्धति में सुशिक्षित करने के उद्देश्य से उन्हें एक दूसरे के निकट लाना।

(७) उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पत्रिकाओं, पुस्तकों तथा अन्य रचनाओं को प्रकाशित करना।

कृष्णभावनामृत का क्या मतलब होता है?

“कृष्णभावनामृत” शब्द सोलहवीं शताब्दी में रचित श्रील रूप गोस्वामी कृत ‘पद्यावली’ के एक वाक्यांश कृष्णभक्तिरसभावित का भक्तिवेदान्त स्वामी का अपना रूपान्तर था जिसका अर्थ है “कृष्ण की भक्ति सम्पन्न करने के परिपक्व रस में लीन रहना”।

आज दुनिया भर में इस्कॉन से जुड़े हुए लाखों भक्त है और इस्कॉन का मुख्य ध्यान हरे कृष्ण महामंत्र के जप,प्रसाद वितरण,शास्त्रों का अध्ययन और शास्त्र वितरण, साथ ही विग्रह सेवा के माध्यम से उन लोगों को भगवान श्रीकृष्ण का ज्ञान प्रदान करना है जो इसे प्राप्त करने में रुचि रखते है।
इस्कॉन समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के साथ जुड़ने,अध्ययन करने के अवसर और भगवान श्री जगन्नाथ के रथ यात्रा उत्सव, श्री कृष्ण जन्माष्टमी,गौर पूर्णिमा उत्सव,कीर्तन मेला जैसे बड़े त्योहारों में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।

इस्कॉन के सदस्य अपने घरों में भक्ति-योग का अभ्यास करते हैं और मंदिरों में भी पूजा करते हैं। वे त्योहारों, प्रदर्शन कलाओं, योग सेमिनारों, सार्वजनिक जप और समाज में साहित्य के वितरण के माध्यम से भक्ति-योग या कृष्ण चेतना को भी बढ़ावा देते हैं। इस्कॉन के सदस्यों ने भक्ति योग के मार्ग के व्यावहारिक अनुप्रयोग के रूप में अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, इको-गांव, मुफ्त भोजन वितरण परियोजनाएं और अन्य संस्थान भी खोले हैं।

इस्कॉन से जुड़े हुए भक्त 4 नियमों का पालन करते है

श्रील प्रभुपाद जी ने चार नियामक सिद्धांत निर्धारित किए जिनका सभी भक्तों को आध्यात्मिक जीवन के आधार के रूप में पालन करना चाहिए।

मांसाहार : मांस, मछली या अंडे नहीं खाना चाहिए
अवैध यौन संबंध नहीं बनाने चाहिए
किसी प्रकार का जुआ नहीं
किसी भी प्रकार का नशा नहीं (शराब, कैफीन और तंबाकू के उपयोग सहित)
शास्त्रों में बताया गया है कि उपरोक्त गतिविधियों में शामिल होने से मनुष्य का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण बाधित होता है, और समाज में चिंता और संघर्ष बढ़ता है।

शास्त्रों का अध्ययन करने पर हमें महाराज परीक्षित और कलियुग के संवाद से पता चलता है कि कलियुग अपने विस्तार के लिए 4 स्थानों पर रहने का निवेदन करता है… और वो 4 स्थान है…
जहां मास भक्षण किया जाता हो क्योंकि जब हम मांस खाते है तब हमारे अंदर दया नहीं रहती हम जीवों पर दया नहीं करते और दया खत्म होने पर घर में शांति भी नहीं रहती है ।


जहां लोग नशा करते हो क्योंकि नशा करने से बुद्धि ठिकाने पर नहीं रहती है फिर मनुष्य तपस्या नहीं कर सकता, तपस्या नहीं करने से धर्म खत्म होता है ।
जहां वैश्यावृत्ति होती हो क्योंकि अवैध संबंध बनाने से पवित्रता नहीं रहती है फिर हमारा व्यहवार,मन सब कुछ दूषित रहता है
जहां जुआ खेला जाता हो क्योंकि जुआ खेलते समय हम झूठ बोलते है असत्य का संग करते है तब हमारी सत्यता खत्म हो जाती है ।

कलियुग में लगभग सभी लोग इन नियमों को तोड़ते रहते है इसीलिए घर घर में,हर व्यक्ति पर कलियुग बैठा है

निष्कर्ष

इस्कॉन एक प्रमाणिक आध्यात्मिक संस्था है और लोगो को भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और ज्ञान के माध्यम से अपने जीवन को अर्थपूर्ण और सार्थक बनाने में मदद करता है,इस्कॉन संगठन पूरी दुनिया में वैदिक संस्कृति और भगवान कृष्ण की भक्ति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसकी शिक्षाएं और कार्यक्रम लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं।

उम्मीद है कि यह ब्लॉग इस्कॉन के बारे में आपको विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा।

हरे कृष्ण!

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